दुनिया भर में पर्यावरण प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभर रहा है,कोरोना काल में ऑक्सीजन के महत्व ने मनुष्यों को कहीं न कहीं आईना दिखलाया है,साल 1972 में स्टॉकहोम(स्वीडन) में संयुक्त राष्ट्र संघ की मेजबानी में आयोजित हुये विश्व के पहले पर्यावरण वैश्विक सम्मेलन में 119 देशों ने भाग लिया। ऐसा पहली बार हुआ था जब पृथ्वी के सिद्धांत को लोंगो ने माना था इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की भी परिकल्पना गढ़ी गयी|
इसी सम्मेलन में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति पर व्याख्यान भी दिया था। इस सम्मेलन को आयोजित करने के पीछे यह मक़सद था कि दुनिया में लोंगो को पर्यावरण के प्रति सचेत, प्रदूषण की समस्या रूबरू कराना और लोगों में जागरूकता फैलाना था,सम्मेलन में भागीदारी भारत की तरफ़ से पर्यावरण की दिशा में पहला कदम था तब से हर साल हम 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते है।
इस दिन बनाया गया था कानून,लोंगो को किया गया था सचेत
प्रकृति की सुरक्षा के लिये 19 नवंबर 1986 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के रूप में जाना जाता है,इस कानून में प्रकृति के सभी तत्वों को सम्मिलित किया गया है जिनमें वायु,जल,भूमि इसके अंतर्गत आते है,इन सब का संरक्षण करना एक जिम्मेदार नागरिक की पहचान है।
इस दिवस को मनाने का उद्देश्य भी बड़ा स्पष्ट है पर्यावरण प्रदूषण,ग्लोबल वार्मिंग,ग्रीन हाउस के प्रभाव,ब्लैक होल,जलवायु परिवर्तन आदि समस्याओं को लेकर लोगों को सचेत करना है।