30 जून को बुधवार को अखिल विश्व गायत्री परिवार के द्वारा महामहिम राज्यपाल महोदया सुश्री अनुसुईया उइके जी के मुख्य आतिथ्य एवं डॉ चिन्मय पण्ड्या जी प्रतिकुलपति देवसंस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार की अध्यक्षता में कृषि वैज्ञाननिकों एवं विशेषज्ञों के माध्यम से छत्तीसगढ़ राज्य के कृषकों के लिए प्राकृतिक खेती पर ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन किया गया। छत्तीसगढ़ जोन समन्वयक दिलीप पाणिग्रही ने बताया किइसमें मुख्य रूप से डॉ ओ पी शर्मा जी केंद्रीय जोनल प्रभारी शांतिकुंज,डॉ. डी.पी. सिंह जी,जैविक खेती प्राकृतिक खेती विशेषज्ञ,योगेंद्र गिरी जल की खेती विशेषज्ञ व डॉ आर.के. गुप्ता प्राकृतिक खेती विशेषज्ञ,सुखदेव निर्मलकर,जोन समन्वयक छत्तीसगढ़ प्रान्त, शांतिकुंज,व छत्तीसगढ़ प्रान्त के कृषकगण शामिल हुए।
डॉ चिन्मय पंड्या ने बताया कि साठ के दशक से हरित क्रांति के लिए अपनाई गई अधिकाधिक रसायनों उर्वरक कीटनाशक एवं खरपतवार नाशकों एवं सिंचाई के
उपयोग पर आधारित प्रौद्योगिकी से जहां खाद्यान्न उत्पादन बढ़ा है वहीं आधुनिक भारतीय कृषि कई गंभीर समस्याओं से वर्तमान में जूझ रही है। निरंतर अनुचित पूर्ण रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से कृशि भूमि में आर्गेनिक मैटर के लगातार घटते जा रहे स्तर से भूमि का स्वास्थ्य लगभग खराब होता जा रहा है कार्यशाला में कृषि वैज्ञाननिकों ने बताया कि हरित क्रांति के मुख्य क्षेत्र रहे पंजाब हरियाणा महाराष्ट्र जैसे विकसित राज्यों सहित अनेक क्षेत्रों की भूमि की उत्पादकता लगभग ठहराव ग्रस्त हो चुकी है वहीं कीटनाशकों की विषाक्तता से उत्पादित अन्न,सब्जी,फल एवं दुग्ध के माध्यम से मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड रहा है। लगातार प्रति व्यक्ति घटती जा रही जोत एवं रसायनों के अधिक से अधिक प्रयोग से महंगी होती जा रही खेती किसान की कमर तोड़ रही है। तथा छोटे एवं मझोले किसानों को कृषि छोड़ने व शहरों की ओर पलायन करने के लिए विवश होना पड़ रहा है। इसका समाधान अब प्राकृतिक संसाधनों का समुचित,नियंत्रित उपयोग एवं पोषण पर आधारित जैविक खेती से ही संभव होगा।
इस पर कृषि वैज्ञानिक एवं नीति निर्धारक सभी सहमत हैं और वे अपने-अपने ढंग से लगातार प्रयत्नशील हैं। परंतु प्रमुख समस्या यह है कि इतनी अधिक मात्रा में जैविक खाद की पूर्ति कैसे और कहां से की जाए जो उर्वरकों का पूर्णतया प्रतिस्थापन कर सके। मशीनी कृषि के प्रोत्साहन से यद्यपि पशुपालन को जो की टिकाऊ खेती का आधार है काफी धक्का लगा है। परंतु हमारे यहां अभी भी कृषि वेस्ट,वानिकी वेस्ट,पशुओं के वेस्ट,शहरी वेस्ट तथा एग्रोइंडस्ट्रियल वेस्ट के रूप में आर्गेनिक व्यर्थ पदार्थों का बाहरी स्रोत उपलब्ध है,जिसे आर्गेनिक मैन्योर में बदला जा सकता है। विभिन्न तकनीकी के माध्यम से आर्गेनिक वेस्ट को कम से कम समय में कंपोस्ट खाद में बदल सकते हैं।
इस हेतु वर्मी कंपोस्टिंग व नाडेप टांका एक अति महत्वपूर्ण एवं क्रांतिकारी प्रौद्योगिकी है। इस लंबी अवधि में मृदा को निर्जीव तत्व मान लेने तथा उसके साथ तद अनुरूप व्यवहार करने की बहुत बड़ी त्रुटि हुई है,जबकि वास्तव में मृदा सजीव है और उसमें विभिन्न सूक्ष्म जीव भारी संख्या में मौजूद रहते है। यह सूक्ष्मजीव कार्बनिक मैटर को वितरित करके पोषक तत्व का रूपांतरण करने तथा उन्हें पौधों को एक स्थिर व टिकाऊ ढंग से उपलब्ध कराने का कार्य करते हैं। जो कि अच्छी फसल लेने हेतु भूमि को स्वस्थ बनाए रखने के लिए अपरिहार्य है। जैविक खाद से भूमि की भौतिक,रासायनिक एवं बायोलाजीकल गुणवत्ता में भी अत्यधिक सुधार होता है। ग्रामीण क्षेत्र में जैविक कृषि,गौपालन,ग्रामीण स्वावलंबन और जल प्रबंधन ऐसे विषय हैं जो एक-दूसरे से जुड़े हुए है। तीनों विषयों को एक साथ ही समग्र रूप में देखा जाता है। किसान की फसल कच्चे माल के रूप में बड़े कारखानों को न जाए। गाँव में ही लघु तथा कुटीर उद्योगों घरेलु उद्योगों के माध्यम से प्रसंस्करण होकर शहर में जाए।
जैसे गेहूँ का आटा,दलिया,सुजी,मैदा गाँव में ही तैयार हो। धान का चावल,तिलहन से तेल, दलहन से दाल गाँव में ही तैयार हो। सब्जी व फलों का प्रसंस्करण भी गाँव में ही हो। दैनिक उपयोग की चीजें जैसे साबुन,मंजन,शैम्पू,केशत तेल जैसी सभी चीजों का उत्पादन गाँव में ही हो। गौपालन,भेंड,बकरी,भैंस,मछली,मुर्गा,मधुमक्खी,केंचुआ पालन आदि इतने कार्य है कि न केवल ग्रामीण युवाओं बल्कि शहर के बेरोजगार युवकों को भी गाँव में रोजगार उपलब्ध होगा। शहर से गाँव की तरफ पलायन होगा। चलें गाँव की ओर भावी दुनियाँ गाँव की।