इंसान जानवरों का उपयोग तो करता है पर उसके साथ इंसानियत भरा संबंध रखने से हिचकिचाता है। मानवीय मूल्य हमें बेसहारा जानवरों के लिए जीवन जीना भी सिखाती हैं। हम अक्सर गली के कुत्तों पर पत्थर फेंकने की सोचते हैं लेकिन उन्हें दो रोटी देने से कतराते हैं। आप को जानकर हैरत होगी कि हमारे इस मतलबी दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग है जो बेजुबान, बेसहारा जानवरों की देखभाल अपने परिजनों की भाँति करते है और उनके जीवन की सुरक्षित करने के लिए ऐड़ी चोटी का प्रयास भी करते हैं।
हम बात कर रहे हैं एक ऐसे ही जीवट की बनी महिला चन्द्रिका योल्मो लामा की जिनका पशुओं से लगाव अपने आप में अनोखा है और आश्चर्य करने वाला भी।
श्रीमती लामा एक सैन्य अधिकारी की पत्नी है। अगर ये चाहती तो सुख सुविधा संपन्न जीवन जी सकती है। लेकिन इनके जानवरों के प्रति लगाव का आलम यह है कि इन्होंने हाई फाई सोसायटी को छोड़कर एक किराये के मकान में रखने का निर्णय लिया । दरअसल, उस सोसायटी में बड़े और रसूखदार लोग रहते हैं जिन्हें गली के कुत्ते का रखना गवारा न लगा। इसलिए इन्हें वो इलाका छोड़ना पड़ा औऱ किराये के मकान में गली के कुत्तों के देखभाल के बीच रहने का निश्चय किया।
आपको इनके जीवन से जुड़ी एक घटना जानकर हैरत तो होगी ही लेकिन वो घटना आप सभी के मन में जानवरों के प्रति लगाव और प्रेम पैदा कर सकती हैं। उन दिनों श्रीमती चन्द्रिका योल्मो लामा गोवा में रहती थी। छुट्टियां बिताने सिलीगुड़ी आयी। ये छुट्टियां बिताने या घूमने जिस शहर में जाती हैं तो वहां के पर्यटक स्थलों पर बाद में जाती है पहले शहर के उनलोगों के पास जाती हैं जो जानवरों की देख भाल कर रहे होते हैं। सिलीगुड़ी में इनकी मुलाकात एक ऐसे ही लड़की से हुई जिनका नाम है प्रिया रुद्र। प्रिया रुद्र लावारिस कुत्तों की देख भाल करने के लिए शेल्टर चलाती हैं।
यहां इनकी नज़र एक ऐसे कुत्ते पर पड़ी जिसका दो पैर ट्रेन एक्सीडेंट की वजह से टूट चुका था, वह अपने इन दोनों जख्मी पैरों को घसीट कर चलता था। इनसे उसका दुख देखा नहीं गया। अपनी छुट्टियां रद्दकर श्रीमती लामा तुरंत गोवा लौटी।
गोवा लौट कर उन्होंने ऐसे पशु चिकित्सक की तलाश शुरू कर दी जो इस कुत्ते के लिए कृत्रिम पैर बना सके।
इन्हें पता चला कि इस तरह का एक चिकित्सक भोपाल में रहता है तो ये अकेली ही तुरंत गोवा से भोपाल आयी। यहां आने के बाद पता चला कि बगैर उस जख्मी कुत्ते को यहां लाये कृत्रिम पैर नहीं बन सकता है तो ये मासूस हो गयी क्योंकि इस नाजुक हालत में उसे सिलीगुड़ी से भोपाल लाना सम्भव नहीं था।
हालांकि श्रीमती चन्द्रिका योल्मो लामा हार नहीं मानी। उन्होंने इस कुत्ते को गोद लेने के लिए कैम्पेन शुरू किया। इन्होंने कश्मीर से लेकर केरल तक के कई लोगों से संपर्क किया। कश्मीर में ऐनिमल वेलफेयर से जुड़े सन्ना बंडे सिद्दीकी तथा सोनम वर्मा ने कनाडा
टोरंटो के एक व्यक्ति से सम्पर्क साधा जो इस कुत्ते को गोद लेने के लिए तैयार हुआ। इस कुत्ते को सिलीगुड़ी से दिल्ली लाया गया ताकि कनाडा भेजने की सभी कानूनी प्रक्रिया पूरी की जा सके। इसी बीच लॉक डाउन लग गया। यह अवधि चुनौती से भरा था। यह कुत्ता बीमार पड़ गया। जैसे तैसे इन्होंने इसका इलाज करवाया। इन्होंने इस कुत्ते की लॉक डाउन अवधि तक पूरी तरह से देख भाल की। अभी कुछ ही महीने पहले उसे कनाडा भेजा गया है।
श्रीमती लामा जी को दो दिन पहले कनाडा के एडॉप्टर ने उस कुत्ते की वीडियो भेजा जिसमे वह अपने दो नकली पैरों के सहारे आसानी से दौड़ रहा है। श्रीमती लामा जी की आंखे भर आयी। आखिर उनका निःस्वार्थ मेहनत रंग लाया। लेकिन उनके जेहन में आज भी एक सवाल है कि हम आखिर इन जानवरों के प्रति इतना परायेपन का व्यवहार क्यों रखते है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि श्री मती चन्द्रिका योल्मो लामा ने अब तक सैकड़ो लावारिस कुत्तों को पाला है, उनके चिकित्सा और भोजन का खयाल रखा है और वही भी बिना किसी सरकारी सहायता के।
-रामबन्धु वत्स