Friday, September 29, 2023

FLYASH प्रवाहित करने से जलस्रोत में प्रदूषण,बिजलीघर संचालकों को परवाह नहीं- REPORT

कोयला आधारित बिजलीघरों के संचालकों पर FLY ASH से संबंधित दुर्घटनाओं के लिए जुर्माना लगाने और पीडित स्थानीय निवासियों को मुआवजा देने के प्रावधान के बावजूद ऐसी घटनाएं देश में निरंतर होती रहती हैं। और मुआवजा का पूरा भुगतान कभी नहीं होता। इसके अलावा FLY ASH मिलने से प्राकृतिक जलस्रोत भी प्रदूषित हो रहे हैं। एक नए अध्ययन ने पाया है कि देश के विभिन्न राज्यों के निवासियों को इन पर्यावरणीय दुर्घटनाओं की वजह से कई तरह का समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

यह रिपोर्ट – “लेस्ट वी फॉरगेट- ए स्टेटस रिपोर्ट ऑफ नेगलेक्ट ऑफ कोल एश एक्सिडेट इन इंडिया ( मई 2019 – मई2021)” जिसे असर सोशल इंपैक्ट एडवाइजर्स, सेंटर फार रीसर्च ऑन इनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) और मंथन अध्ययन केन्द्र द्वारा तैयार किया गया है। यह रिपोर्ट भारत में अगस्त 2019 से मई 2021 के बीच कोयला आधारित बिजली प्रकल्पों में फ्लाई एश से जुड़ी दुर्घटनाओं की स्थिति के बारे में है। यह रिपोर्ट इसतरह की आठ दुर्घटनाओं के अध्ययन पर आधारित है जिसमें मध्यप्रदेश, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत छह राज्यों में हुई दुर्घटनाएं शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में अनपारा थर्मल पावर स्टेशन से निकले FLY ASH का उपयोग बहुत कम होता है और FLY ASH को नियमित रूप से रिहंद जलाशय में प्रवाहित कर दिया जाता है। जिससे रिहंद जलाशय का पानी प्रदूषित हो रहा है। रिहंद में प्रवाहित FLY ASH का 21 प्रतिशत अनपारा थर्मल पावर स्टेशन का होता है। स्थानीय निवासियों ने बताया कि “पिछले कुछ वर्षों में एशपौंड के प्रवाह को रोकने के लिए अनेक आदेश निर्गत हुए,पर सात-आठ वर्ष बीतने के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है।“
रिपोर्ट के लेखकों ने कहा है कि कुछ जगहों पर दुर्घटना के कई महीनों के बाद भी FLY ASH खेतों में पड़ी है, कुछ जगहों पर गांवों के आसपास के कुओं में राख भरी हुई है जिससे वह उपयोग के लायक नहीं रह गया है। पावर प्लांट न केवल राख हटाने, स्थल को दुरुस्त करने, स्वास्थ्यगत प्रभावों का निदान निकालने में नाकाम रहा,बल्कि प्रभावित गांववालों को पूरा मुआवजा देने में भी नाकाम रहा है।

अध्ययन में पता चला है कि हवा में मिली राख की वजह से क्षय रोग (टीबी) और सांस संबंधी बीमारियां समूचे केन्द्रीय भारत में फैल रही हैं। इसका प्रभाव प्राकृतिक जलस्रोतों के गंभीर प्रदूषण के रूप में भी दिख रहा है क्योंकि राख को सीधे नदी में डाल दिया जाता है।  अध्ययन के दौरान मध्यप्रदेश के एस्सार थर्मल पावर स्टेशन, विंध्याचल थर्मल पावर प्लांट और रिलायंस ससान अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट,उत्तर प्रदेश के अनपारा थर्मल पावर स्टेशन,ओडीसा के तालचर थर्मल पावर स्टेशन, झारखंड के बोकारो थर्मल पावर स्टेशन,तमिलनाडु के उत्तर चेन्नई थर्मल पावर स्टेशन और बिहार के कहलगांव सुपर थर्मल पावर स्टेशन में कोयले की राख से संबंधित दुर्घटनाओं का आंकलन किया गया है।

राख से जुड़ी दुर्घटनाओं की प्रकृति और आजीविका पर प्रभाव से जोड़ते हुए मंथन अध्ययन केन्द्र की सह-लेखक सेहर रहेजा ने कहा कि “संरचनात्मक रूप से अस्थिर एश पौंड और रिसाव वाले एश स्लरी (राख का घोल) के पाइपलाइनों का विस्तृत अध्ययन किया गया है जिनके कारण खेतों और उस पूरे इलाके को जहरीली राख (कोल एश) ने ढंक लिया है। इसे विभिन्न राज्यों में हुई दुर्घटनाओं में समान रूप से देखा जा सकता है।“
ताजा दुर्घटना 15 जून को छत्तीसगढ़ के कोबरा में एनटीपीसी और एसीबी इंडिया पावर प्लांट में हुई जिसमें एश डैम दरार आने से राख मकान और खेतों में फैल गई,स्थानीय लोगों की आजीविका और स्वास्थ्य पर संकट उत्पन्न हो गया है।

केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने 22 अप्रैल को थर्मल पावर स्टेशनों में जमा FLY ASH का उपयोग करने के बारे में अधिसूचना का मसौदा प्रकाशित किया। अधिसूचना ने फ्लाई एश का 100 प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित करने के लिए कोयला या लिग्नाइट आधारित थर्मल पावर प्लांट को तीन से पांच वर्षों का अतिरिक्त समय दिया और उसके अन्य प्रावधानों में “फ्लाई एश प्रबंधन प्रणाली के टिकाऊपन” को रखा गया है। इसे 22 अप्रैल से दो महीने के लिए सार्वजनिक टिप्पणियों के खुला रखा गया था।

- Advertisement -

Hot Topics

Related Articles